В 12-ти томнике собраний сочинений Рабиндраната Тагора большое количество стихов, романов, статей, эссе. А стихи особенно красивы. Ведь и гимн Индии от Тагора - Ванде матарам!
Добавлено через 1 час 29 минут
Интересная штука, конечно это не от Тагора, а от меня:
भारत देश हमारा प्यारा, न्यारा इसका संविधान है
शीतल धवल दुग्ध धार है कहीं उबलता क्या विधान है
तरह तरह की भाषा बोली हैं हम जोली
दुश्मन-मित्र हैं अपने घर ही कहीं है गोली
आस्तीन के सांप बनाये रखना दूरी
तिलक देख है फंस -फंस जाती भोली-
जनता ! त्राहि -त्राहि कर न्याय मांगती
मुंह में राम बगल में छूरी कहाँ जानती
ये रस्सी या सांप बड़ा ही विभ्रम यारों
गीता – देवी एक ही पोथी ‘देव’ अलग हैं
लोअर- मिडिल -अपर में देखो बड़ा फरक है
कहाँ है दुर्गा चंडी राम कृष्ण जो रावण खोजें
बड़े बड़े हैं देव बंधे घर रावण मोहित होते सोते
उडती चिड़िया काट लिए ‘पर’ कहाँ प्यार है ??
तुम हो अपने ?? कितना ढीला जर्जर अपना संविधान है
आओ कसें कसौटी रच-रच सुदृढ़ इसे बनायें
नियम नीति अनुशासन डर भय सारे ला के
सचमुच प्यारा न्यारा अपना ‘संविधान’ हम पायें
नमन करें ‘माँ’ -‘भारति’ को हम शस्त्र हो अद्भुत
जन-गण मन पुलकित हो उभरें नित नूतन सद्गुण
अपनी संस्कृति प्रेम सत्य ईमान गगन हो
सागर सा दिल मिल मिल खिल खिल फूल बना हो
चंदन सा फिर जहां सुवासित शीतलता हो
हों भुजंग भी विन विष वाले समता ममता यहाँ वहां हो !
Последний раз редактировалось viktorkumar2; 19.04.2013 в 10:28..
|